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Ancestry of Kunti or Kuntya

Kunthal (कुंथल) Kuntal (कुंतल) Khutail(खुटैल) Khuntel (खुंटेल) Khuntal (खुंतल) Kountel (कौंटेल) Kunthal (कुंठळ) Kundal (कुंडळ) is a gotra of Jats found in Uttar Pradesh, Rajasthan and Madhya Pradesh. Dilip Singh Ahlawat has mention it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [1] They are Chandravanshi Kshatriyas.

Origin

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They are descendants of Kunti and Pandu. Kuntibhoja were the tribe in which Kunti was born. [2] Tomar and Kuntal are same gotra . Kuntal is asub gotra of Tomar gotra.

वंशावली वाले इन्हें भी तोमरों से अलग हुआ मानते हैं|इसलिए तोमर और कुंतल एक ही गोत्र है । उनमे आपस में विवाह वर्जित है| इतिहासकारों ने तोमरो को चन्द्रवंशी पांडु पुत्र अर्जुन के वंशज माना है ।कुंतल जाट(कुंती पुत्र) मथुरा और भरतपुर में पाया जाता है वे कुंती और पांडु के वंशज हैं, तो उन्हें कुंतल बुलाया| तोमर जाटो को आज भी कुंती पुत्र , पार्थ (पृथा पुत्र), कोंतये ,पांडव भी कहते है जो तोमर जाटो के पांडुवंशी होने पर मोहर लगाते ।

  • तोमर पांडव के वंशज है और अर्जुन कुंती पुत्र होने के कारन ही तो कोन्तेय कहे लाते है इस लिए ही तोमर जाट जब 1162 में दिल्ली में राज्य चला गया तो वो लोग मथुरा क्षेत्र में बस गये थे । उस समय उन लोगो ने अपनी कुल देवी योगमाया (कृष्ण की बहिन ) का मंदिर गोपालपुर जाजम पट्टी में बनवाया था । जो मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही मनसा देवी कहलाती है । जो आज भी कुंतल जाटो की कुल देवी है ।

कुन्तलो के मथुरा में बसने का इतिहास हमे बताता है की अनंगपाल-3rd(अर्कपाल) का दिल्ली से राज्य खत्म हो गया तो अनंगपाल तोमर के सगे परिवार के लोगो ने पृथला (कुंती (पृथा) के नाम पर ) गाँव पलवल में बसाया जो आज भी है ।राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए। कुछ परिवार के लोगो ने कुंतल पट्टी बसाकर , सौख क्षेत्र की खुटेल, (कुंतल) पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है।मथुरा में तोमरो के वंशजो को कुंतल (कुंतीपुत्र ) कहते है उसी समय इनके कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है।

History

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Kuntala (कुन्तल) - In Mahabharata there were two Kuntala countries, one in the north and another in the south. The southern Kuntalas fought with the Kauravas (VI.47.12). [3] The Mahabharata Tribe - Kuntala (कुन्तल) may be identified with Jat Gotra - Kuntal (कुंतल).[4]

They are mentioned in the Markendeya Purana. Mahabharata also refers to them as in the West. Upendra Thakur quotes authority which mentions the Khuntals alongwith Hunas. [5] D.C. Sarkar mentions in the Puranas as Kuntalas are the present Khuntel Jats. This is amply proved by their association with the Hunas as well as by Muir’s quotations. They are mentioned in the Mahabharata and Sanskrit English Dictionary ( M. Williams) as Kunthaka. [6]

There is mention of Kuntibhoja and Kaunteya people in Mahabharat. Kuntibhoja people are those to whom Kunti was adopted. Kaunteya are the descendants of Pandu and Kunti. The Kaunteya people later became Kuntal and Khuntail over a period of time. Mathura memoirs mention that Kunthal jats defeated the Kirars ruling over many districts of Mathura. [7]

Kuntala is mentioned in Harsha Charita as a chief officer of cavalry and a great noble high in Rajyavardhana's favour.[8] We, for sure, know from the Harshacharita that "after Rajyavardhana's speech, Harsha takes courage and recollects his ancestors by saying, "have Virkodara and others been forgotten ? - claiming a birth from a heroic line" and after Kuntala chief officer of cavalry and a great noble high in Rajyavardhana's favour, broke the news of the treacherous murder of the latter, to his brother; Harsha; Harsha takes a vow, like Virkodara, athirst for his enemy's blood; to avenge the death of his brother"[9].

Pushkar Singh alias Pakharia has been a great martyr in Khuntail gotra Jats. Pakharia played an important role in breaking the invincible gate of the fort at the time of attack on Delhi by Maharaja Jawahar Singh of Bharatpur. [10]

Sitaram Kunthal constructed a fortress place called Petha near Goverdhan in Mathura area. There is one fortress of Kuntals in Saunor as well. Mathura memoirs have mentioned that Hathi Singh, a Khuntail Jat, occupied Saunkh and reconstructed the fort of Saunkh. This was at the time of Maharaja Suraj Mal. [11]

Faujdar was a title awarded by Muslim rulers to people who had responsibility of protecting some territory. Sogarwar, Chahar, Sinsinwar, Kuntal etc Jat gotra people use this title.

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि महाभारत में कुन्ति-भोज और कौन्तेय लोगों का वर्णन आता है। कुन्ति-भोज तो वे लोग थे जिनके कुन्ति गोद थी। कौन्तेय वे लोग थे, जो पांडु के यहां महारानी कुन्ती के पैदा हुए थे। महाराज पांडु के दो रानी थीं - कुन्ती और माद्री। कुन्ती के पुत्र कौन्तेय और माद्री के माद्रेय नाम से कभी-कभी पुकारे जाते थे। ये कौन्तेय ही कुन्तल और आगे चलकर खूटेल कहलाने लग गए। जिस भांति अपढ़ लोग युधिष्ठिर को जुधिस्ठल पुकारते हैं उसी भांति कुन्तल भी खूटेल पुकारा जाने लगा। बीच में उर्दू भाषा ने कुन्तल को खूटेल बनाने में और भी सुविधा पैदा कर दी। खूटेल अब तक बड़े अभिमान के साथ कहते हैं -

“हम महारानी कौन्ता (कुन्ती) की औलाद के पांडव वंशी क्षत्रिय हैं।”

भाट अथवा वंशावली वाले खूटेला नाम पड़ने का एक विचित्र कारण बताते हैं - “इनका कोई पूर्वज लुटेरे लोगों का संरक्षक व हिस्सेदार था, ऐसे आदमी के लिये खूटेल (केन्द्रीय) कहते हैं।” किन्तु बात गलत है। खूटेल जाट बड़े ही ईमानदार और शान्ति-प्रिय होते हैं।


7. ट्राइब्स एण्ड कास्टस् आफ दी नार्दन प्राविंसेस एण्ड अवध, लेखक डब्ल्यू. क्रुक।
8. सरस्वती। भाग 33, संख्या 3 ।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-559


वंशावली वाले इन्हें भी तोमरों से अलग हुआ मानते हैं कि राजपूत तोमर ने जाटनी से शादी कर ली, इस कारण यह राजपूत से जाट हो गए। हम कहते हैं कि तोमर राजपूत ही तोमर जाटों से निकले हुए हों तो क्या अचम्भा है?


‘मथुरा सेमायर्स’ पढ़ने से पता चलता है कि हाथीसिंह नामक जाट (खूटेल) ने सोंख पर अपना अधिपत्य जमाया था और फिर से सोंख के दुर्ग का निर्माण कराया था। हाथीसिंह महाराजा सूरजमल जी का समकालीन था। सोंख का किला बहुत पुराना है। राजा अनंगपाल के समय में इसे बसाया गया था। गुसाई लोग शंखासुर का बसाया हुआ मानते हैं। मि. ग्राउस लिखते हैं -

"जाट शासन-काल में (सोंख) स्थानीय विभाग का सर्वप्रधान नगर था।1 राजा हाथीसिंह के वंश में कई पीढ़ी पीछे प्रह्लाद नाम का व्यक्ति हुआ। उसके समय तक इन लोगों के हाथ से बहुत-सा प्रान्त निकल गया था। उसके पांच पुत्र थे - (1) आसा, (2) आजल, (3) पूरन, (4) तसिया, (5) सहजना। इन्होंने अपनी भूमि को जो दस-बारह मील के क्षेत्रफल से अधिक न रह गई थी आपस में बांट लिया और अपने-अपने नाम से अलग-अलग गांव बसाये। सहजना गांव में कई छतरियां बनी हुई हैं। तीन दीवालें अब तक खड़ी हैं ।

मि. ग्राउस आगे लिखते हैं -

"इससे सिद्ध होता है कि जाट पूर्ण वैभवशाली और धनसम्पन्न थे। जाट-शासन-काल में मथुरा पांच भागों में बटा हुआ था - अडींग, सोसा, सांख, फरह और गोवर्धन2

‘मथुरा मेमायर्स’ के पढ़ने से यह भी पता चलता है कि मथुरा जिले के अनेक स्थानों पर किरारों का अधिकार था। उनसे जाटों ने युद्ध द्वारा उन स्थानों को अधिकार में किया। खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे। पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है।

अडींग के किले पर महाराज सूरजमल से कुछ ही पहले फौंदासिंह नाम का कुन्तल सरदार राज करता था। उसने सिनसिनवारों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। कहा जाता है कि खेमकरन सोगर नरेश को फौंदासिंह ने ही जहर दिया था।


1. मथुरा मेमायर्स, पृ. 379 । आजकल सोंख पांच पट्टियों में बंटा हुआ है - लोरिया, नेनूं, सींगा, एमल और सोंख। यह विभाजन गुलाबसिंह ने किया था।
2. मथुरा मेमायर्स, पृ. 376 ।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-560


पेंठा नामक स्थान में जो कि गोवर्धन के पास है, सीताराम (कुन्तल) ने गढ़ निर्माण कराया था। कुन्तलों का एक किला सोनोट में भी था।

कुन्तल (खूंटेल) सिनसिनवारसोगरवारों की भांति डूंग कहलाते हैं। लोग डूंक शब्द से बड़े भ्रम पड़ते हैं। स्वयं डूंग कहलाने वाले भी नहीं बता सकते कि हम डूंग क्यों कहलाते हैं? वास्तव में बात यह है कि डूंग का अर्थ पहाड़ होता है। पंजाब में ‘जदू का डूंग’ है। यह वही पहाड़ है जिसमें यादव लोग, कुछ पाण्डव लोगों के साथ, यादव-विध्वंश के बाद जाकर बसे थे। बादशाहों की ओर से खूंटेल सरदारों को भी फौजदार (हाकिम-परगना) का खिताब मिला था।

Distribution in Rajasthan

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Kuntal Khap has 38 villages in Bharatpur district. [12]

Locations in Jaipur city

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Khatipura, Gandhi Nagar, Gopalpura Bypass, Malviya Nagar, Sanjay Colony, Subhash Colony,

Villages in Bharatpur district

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Abhaurra, Bharatpur, Burawai, Gunsara , Jatoli Rathman, Jharkai, Nagla Chaudhary, Rupbas, Ajan, Takha, Nagla Khuntela, Talfara

Villages in Sawai Madhopur district

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Banjaria,

Distribution in Uttar Pradesh

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Kuntal Khap has 110 villages in Mathura district. [13]

Villages in Mathura district

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Dhana Teja, Bandpura, Borpa, Jatauli, Nagla Bhuria, Magora, Beroo, Sabla, Sera, Gulal, Bachgaon, Son, Sonkh, Odham

Villages in Hathras district

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Khaunda,JALALPUR ,BAANDNU JALALPUR

Villages in Muzaffarnagar district

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Muzaffarnagar,

Villages in Agra district

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Tikari (1),

Notable persons from this gotra

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  • Anuprerna Kuntal - RAS Dy. Director (HCM RIPA), Date of Birth : 9-December-1964, Home District : Bikaner, Resident Phone Number : 0141-2701511, Mobile Number : 9829051150, Email Address : anuprerna.kuntal@gmail.com
  • Rishi kuntal Talfara- yuva neta Talfara Kumher District bharatpur

Date of Birth:- 15 August 1995 Email Address : rishikuntal58@gmail.com

Reference

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  1. ^ Dilip Singh Ahlawat: Jat viron ka Itihasa
  2. ^ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998. p. 228
  3. ^ पौण्ड्रकॊ वासुथेवश च वङ्गः कालिङ्गकस तदा ।आकर्षः कुन्तलश चैव वानवास्यान्ध्रकास तदा (II.31.11)
  4. ^ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998. p. 228
  5. ^ The Hunas in India , p. 55 note 2
  6. ^ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), 1980, Sterling Publishers New Delhi , p. 283
  7. ^ Thakur Deshraj, Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992, p. 559
  8. ^ The Harsha Charita of Bana/Chapter VI
  9. ^ The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/An Historico-Somatometrical study bearing on the origin of the Jats,p.135
  10. ^ Kishori Lal Faujdar: Uttar Pradesh ke Madhyakalin Jatvans avam Rajya, Jat Samaj, Agra, April 1999.
  11. ^ Kishori Lal Faujdar: Uttar Pradesh ke Madhyakalin Jatvans avam Rajya, Jat Samaj, Agra, April 1999.
  12. ^ Jat Bandhu, Agra, April 1991
  13. ^ Jat Bandhu, Agra, April 1991

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