केशकाल गोबरहीन -गोबरहीन के नलयुगीन शिवालय

शिव मंदिर

कोण्डागाँव जिले मे केशकाल से क्रमश: ६ किलोमीटर की दुरी पर पास गोबरहिन एवं गढ़धनोरा नाम का छोटा सा गाँव है. इस गांव मे टीलो की खुदाई से अनेक प्राचीन मंदिर प्रकाश मे आये है. ईंटो से निर्मित इन मन्दिरो को तीन समूहो मे बांटा गया है जो कि विष्णु मन्दिर, बंजारिन मन्दिर और गोबराहीन मंदिर समूह मे विभक्त है. विष्णु मन्दिर समूह मे विष्णु और नरसिह मन्दिर सहित कुल दस मन्दिर, बंजारिन मंदिर समूह मे चार ध्वस्त मंदिर एवं गोबराहीन मंदिर समूह मे दो विशाल टीले है. जिसमे एक टीले की खुदाई से ईंटो से निर्मित शिव मंदिर सामने आया है. यह मंदिर गर्भगृह और अन्तराल मे विभक्त है.

गर्भगृह मे जलहरी युक्त विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. यह मन्दिर धरातल से अधिक उंचाई पर स्थित है. मन्दिर मे प्रवेश

करने के लिये उपर की ओर सीढियाँ बनी हुई थी. यह एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ था ऐसा प्रतीत हो रहे है ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की यहाँ नलवंश के राजा बराहराज ने ११ विष्णुमंदिर तथा २२ शिव मंदिर का निर्माण करवाया था ,मंदिर सिरपुर के सुरंग टीले के समान रहा होगा. इसी तरह विष्णु मन्दिर समूह एवं गोबराहीन के एक अन्य टीले मे भी इसी प्रकार के विशाल और अधिक उंचाई वाले मन्दिरो के ध्वंसावशेष अवस्थित है. ये मन्दिर अपनी उंचाई और विशालता के कारण सिरपुर के सुरंग टीले मन्दिर के पूर्वगामी रहे होगे. इन मंदिरो की अन्य विशेषता यह थी कि यहाँ स्थापित प्रतिमाये योनीपीठ मे प्रतिष्ठापित रही है. शिव मंदिर के शिवलिंग अचल शिवलिंग है जो कि धरती से बाहर तीन फ़ीट और धरती के अन्दर छ फ़ीट से अधिक लम्बाई के है. गोबराहीन के पास ही गढ धनोरा है जहां से इस प्रकार के अन्य टीले एवं प्राचीन प्रतिमाये प्राप्त हुये है. गोबराहीन टीले मे ही भगवान भैरव की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है. इतिहासकारो ने इन मंदिरो का निर्माण काल पांचवी से सातवी सदी के मध्य माना है. प्राचीन बस्तर अर्थात महाकान्तार मे चौथी सदी से लेकर सातवी सदी नलवंश के शासको का शासन था. समुद्रगुप्त की प्रयागप्रशस्ति मे महाकान्तार के व्याघ्रराज को पराजित करने का उल्लेख मिलता है. व्याघ्रराज के बाद वराहराज महाकान्तार के नल शासक हुए. कोण्डागाँव के पास एडेगा से वराहराज की स्वर्ण मुद्राये प्राप्त हुई. वराह राज के बाद भवदत वर्मन शासक हुए. भवदत के बाद अर्थपति भट्टारक एवं स्कन्दवर्मन शासक बने. स्कन्दवर्मन ने वाकाटको द्वारा नष्ट की गयी पुष्करी को पुन: बसाया. कुछ इतिहासकार ओडिसा के पोडागढ तो कुछ गढधनोरा को नलो की राजधानी पुष्करी मानते हैं. स्कन्दवर्मन के बाद बस्तर से नलो की सत्ता पतनोमुख हो गयी.

इसी प्रकार गोबरहीन नामक ग्राम के पास ८ तिलो की खुदाई के दौरान प्राचीन पुरावशेष प्राप्त हुए जो की शिव मंदिरो के है । साथ ही दो शिवलिंग प्राप्त हुए है । एक विशाल टीलो के ऊपर एक बड़ा शिवलिंग प्राप्त हुआ है तथा साथ ही प्राचीन ईटो से निर्मित गर्बग्रह के भी अवशेष प्राप्त हुए है । विशाल टीलो से यहाँ अनुमान लगाया जा सकता है की उक्त मंदिर कितना ऊचा रहा होगा साथ ही भव्य भी ऐसी किवंदित है की उक्त पाषाढ़ का शिवलिंग चमत्कारिक है तथा यदि व्यक्ति ऐसे दोनों दोनों हांथो में भरने तो दोनों हाथ की उंगलिया आपस में नहीं मिल पाती । जल चढाने पर शिवलिंग चमकने लगता है । यहाँ शिवलिंग इस विशाल टीले के ऊपर की और स्थापित है । यहाँ के स्थानीय लोगो का कहना है की उक्त शिवलिंग के ऊपर मंदिर का निर्माण करने का आदेश चैत्र के देवो के द्वारा दिया गया है गढ़धनोरा में एक प्राचीन तालाब मिला है जिसे ईंटों के द्वारा बांधा गया है ऐसा कहा की यहाँ तालाब भी यहा से प्राप्त पुरावशेष के समकक्ष है इनके पानी हल्का कड़वा है तथा कभी नहीं सूखता । ऐसी सम्भावना है की खुदाई से यहाँ के इतिहास एवं सभ्यता व संस्कृति के नए तथ्यों का पता चलेगा मांघ पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ मेला लगता है तथा श्रद्धालु यहाँ आकर पूजा अर्चना करते है । इस झेत्र का विकाश यहाँ पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है ।

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