ॐ-सोऽहँ-ज्योति मूर्ति मात्र को भगवान् कहना असत्य है । कोई शरीर मात्र भगवान् नहीं, भगवान् परमतत्त्वम् है


इस धरती क्या , देवलोक में भी कोई नहीं जानता कि जीव क्या होता है ? रात दिन जीव का धन्धा करने वाले यमराज भी नहीं जानते कि जीव क्या होता है ?

शिक्षा,स्वाध्याय,अध्यात्म और तत्त्वज्ञान इन चारों की सरहस्य जानकारी केवल सद्गुरु भगवदावतारी से ही प्राप्त होती है; अन्य किसी से नहीं।

ॐ-सोऽहँ-ज्योति मूर्ति मात्र को भगवान् कहना असत्य है । कोई शरीर मात्र भगवान् नहीं, भगवान् परमतत्त्वम् है

खिलकत जिस्म रूह नूर अल्लाहताला का अलग अलग दर्शन दीदार कराने वाले सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस

पहली शिक्षा, स्वाध्याय है दूसर, तीसर में योग-अध्यात्म है । तत्त्वज्ञान को चौथा जानो जिससे मिलता भगवान् है ।

मानव जीवन की सार्थकता और सफलता भगवद् प्राप्ति में है, रोटी-कपड़ा-मकान तथा साधन और सम्मान के पीछे दौड़ लगाने में नहीं ।

गृहस्थों का जीवन इन्द्रियों से, इन्द्रियों के लिए और इन्द्रियों तक ही इनका जीवन रहता है अर्थात इन्द्रियों को तृप्त करना मगर ज्ञानी का जीवन परमात्मा से, परमात्मा के लिए, परमात्मा तक अर्थात् अमरत्व की प्राप्ति मोक्ष परमपद की प्राप्ति ही ज्ञानी का जीवन है ।

परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान्- अरिहन्त-बोधिसत्त्व-सत्सीरी अकाल एकमात्र 'एक' ही है और एकत्त्व वाला है |

विनाश से बचने का उपाय

दोष-रहित सत्य प्रधान मुक्ति और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवनविधान वाले तत्त्वज्ञान विधान

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16:21, 25 December 2015 (UTC)