नृसिंह, यानि कि नर और सिंह का अवतार। हिन्दू धर्म में इन्हें भगवान नृसिंह के नाम से जाना जाता है। ये आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे, इनका सिर एवं धड़ तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे। विष्णु जी के नृसिंह अवतार भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं भारत में भगवान नृसिंह की जयंती काफी उत्साह से मनाई जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। विष्णु जी के इस अवतार से संबंधित एक कथा भी पुराणों में दर्ज है, जो हमें इस अवतार के अवतरित होने का उद्देश्य समझाती है। पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था। उन्हें अपनी पत्नी से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु रखा गया। राजा कश्यप के पहले पुत्र हिरण्याक्ष को भगवान श्रीविष्णु ने वराह रूप धरकर तब मार दिया था, जब वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था। अपनी भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु बेहद क्रोधित हुआ, और उसने इसका बदला लेने की ठान ली। उसने प्रतिशोध लेने के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने उसे ‘अजेय’ होने का वरदान दिया। यह वरदान पाकर उसकी मति मलीन हो गई और अहंकार में भरकर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा।