करहापूजा- सुनील यादव (भगत जी), द्वारा यह पूजा सन 2005 से आज भी यह पूजा उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कराया जाता है। पंथी के द्वारा ही यह पूजा सम्पन्न कराया जाता है।

कराहापूजा- उत्तर भारत के आभीर ,यादव , अहीर , ग्वाला जाति के लोग अपने पशुओ की बीमारी से रक्षा , खेती के कार्य मे वर्षा की स्थिति जानने के लिए सावन महिने मे काशीदास बाबा की (कराहा) पूजा करते है । काशीदास नाम के महात्मा जिनका कालखण्ड 14वीं सदी मेरी कालगणना के हिसाब से बैठता है । महात्मा कबीर की भांति यह भी ब्राह्मण जाति के नही होने के बाद भी आन्तरिक ज्ञान ऊर्जा से परिपूर्ण थे । इनका जन्म किसी यादव परिवार मे हुआ था । जिसकी कोई प्रामाणिक जानकारी मुझे नही है । इन्होने भी परांकुश मुनि की शिष्य परम्परा के नौवीं पीढी के आत्मारामी सन्त स्वामी रामानन्द जी से दीक्षा प्राप्त किया था। इनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है ।- परांकुश मुनि जिनको सठकोपाचार्य भी कहा जात है । इनके बाद श्री नाथमुनि, - पुण्डरीक ,- यमुनाचार्य,- पंचपूर्ण,- रामानुज ,-देवाधिपमुनि ,-हरियानन्द ,- राघवानन्द और इनके शिष्य श्री रामानन्द जी महाराज हुए । जिनसे आपने काशी मे दीक्षा प्राप्त किया था । मेरी समझ से श्री कबीरदास जी की तरह से ही आपका काशीदास नाम भी गुरु प्रदत्त ही है । स्वामी रामानन्द जी के साठ से अधिक शिष्य सन्तो की परम्परा चली । ये सभी लोग अपने - अपने क्षेत्र के बड़े महात्मा थे । एक बात और जानने योग्य है कि स्वामी जी वैष्णव पन्थ के सन्त थे । लेकिन उनके शिष्यो मे शैव,वैष्णव, साकार, निराकार , सगुण , निर्गुण सभी पन्थो को मानने चलाने वाले सन्त हुए । इनकी ही शिष्य परम्परा मे कबीर भी थे । तो सुरसुरानन्द जी, बेलानन्द जी , शून्यानन्द जी ,चेतानन्द जी , बिहारीदास जी , रामदास जी , विनोदानन्द जी , धरणीदास जी , चैनराम बाबा , महराज बाबा, आदि अनेकानेक सन्त हुए । इनकी पूजा गाँवों मे यादव जाति के लोगो द्वारा खुले मैदान मे सामूहिक रुप से की जाती है । श्री काशीदास जी भी वैष्णव सन्त थे । ये भगवान कृष्ण के उपासक थे । इन्होने भगवान श्री कृष्ण का साकार रुप मे दर्शन किया था । इसलिए इस पूजा मे भक्तगण भगवान श्री कृष्ण के जयकारे लगाते रहते है । इस पूजा को कराने वाले पुजारी जो इसी जाति के होते है ,पन्थी कहते है । यह पंथी खूब घड़ो के पानी से नहाते है । आकाश से उपले [गोइठा ] पर आकाश से आग मंगवाते है । जिसपर हवन पूजा होती है । ढेर सारे दूध से खीर बनती है । पन्थी गरम खीर से भी नहाते है , परन्तु वह जलते नही है । उनकी फ़ेकी गयी खीर से दूसरे भी नही जलते है ।पहले ये लोग खीर के साथ उपले पर बनी लिट्टी साथ मे खाते बाटते थे । अब खीर के साथ पूड़ी बनाते है । ये पन्थी लोग अनेक भविष्यवाणियां भी करते है । जिसपर यह समुदाय पूरा विश्वास भी करता है ।

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