क्या तुम जानते हो, तुम्हारे भीतर अभी भी कितना तेज, कितनी शक्तियां छिपी हुई हैं ? क्या कोई वैज्ञानिक भी इन्हें जान सका है ? मनुष्य का जन्म हुए लाखों वर्ष हो गये, पर अभी तक उसकी असीम शक्ति का केवल एक अत्यन्त क्षुद्र भाग ही अभिव्यक्त हुआ है। इसलिए तुम्हें यह नहीं कहना चाहिए कि तुम शक्तिहीन हो। तुम क्या जानों कि ऊपर दिखाई देने वाले पतन की ओट में शक्ति की कितनी सम्भावनाएं हैं ? जो शक्ति तुममें है, उसके बहुत ही कम भाग को तुम जानते हो।तुन्हारे पीछे अनन्त शक्ति और शान्ति का सागर है।

इसलिए


"चार बांस चौबीस गज,आंगल अष्ट प्रवान,मार मार मोटे तो चूक न चौहान".