शीर्षक-  मृत्यु ही तो सत्य है

________________________________________

________________________________________

मैं पं० अभिषेक बाजपेई  एक  20 वर्षीय ब्राह्मण पुत्र हूँ! हमारे हिन्दू संस्कृति के अनुसार अमावश्या के दिन गंगा स्नान करना अतिशुभ माना जाता है!  तो मैं गंगा स्नान करने गया जैसे ही मै गंगा स्नान कर घाट पर वापस आया तभी मेरी नजर पास ही के घाट मे पड़ी!

और देखा की कुछ लोग मृत्यु शैय्या मे विराज एक शव को अग्नि दे रहे है , मैं भी उस घाट पर जा पहुंचा तथा चुपचाप शव को नमन कर  खड़ा हो गया!

मैं एकाग्र मन से देखे जा रहा हूँ, तभी मै महसूस करता हूँ कि गंगा किनारे भस्मीभूत  होता यह देह एक बात बोल रहा है आत्मा अमर रहेगी अंत तो देह का हो रहा है

मृत्यु शैय्या पर विराज शव देख मेरे भी आँखों से निरन्तर आँसू छलक रहे हैं!

परन्तु अब तो मुझे भी सत्य समझ आ रहा है की हम जो ये मृत्यु ढोता जीवन जीते हैं इसका एक ही सत्य मार्ग है मृत्यु से मिल जाना है! जो भी आया है इस जग में उसे एक दिन जाना है क्योंकि मृत्यु शांत है, मृत्य ही तो शाश्वत है मृत्यु जीवन की अंधाधुंध दौड़ के पश्चात् का ठहराव है! मृत्यु ही तो इस जीवन के मायावी उजाले तथा दुनियावी छलावे से दूर तक नवतेज की सम्मुख यात्रा है!

उधर शव अग्नि में समाहित हो रहा है इधर गंगा किनारे घाट पर मौजूद प्रत्येक व्यक्ति पार्थिव के रगों के साहस को निरन्तर बहते देख रहा है,तथा इंतेजार कर रहा है उस वक्त का जब हाड़ मांस सब खत्म होगा, यौवन जब यह भस्म होगा अर्थात काया जल कर  भष्म मे परिवर्तित होगी, महज चंद ही घण्टों मे सम्पूर्ण काया भस्म मे परिवर्तित है!

अंत में पूछती है भस्म,कि अब बताओ मुझे?

यदि जीवन पवित्र है तो मृत्यु अपवित्र कैसे?

क्योंकि मनुष्य मृत्यु को असुंदर ही नहीं, अपितु अपवित्र भी मानता है!जबकि जीवन तो सिर्फ एक आधार है मृत्यु ही तो सत्य है,तो फिर सत्य कैसे अपवित्र हो सकता है!


                               लेखक- पं_अभिषेक_बाजपेई

#Pt_Abhishek_bajpai ☝️ #eksamanyabhartiya🇮🇳

#Hindutva_fire_star_Ek_Rastrabhakta ☝️

#पं_अभिषेक_बाजपेई ☝️

#एक_सामान्य_भारतीय🇮🇳 #हिंदुत्व_फायर_स्टार_एक_राष्ट्रभक्त ☝️