लोधा जाति

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लोधा भारत में रहने वाली एक प्राचीन हिन्दू जाति है। प्राचीन वर्ण व्यवस्था में इस जाति को क्षत्रीय वर्ण का माना गया है और इसे लोध के नाम से जाना जाता था।[1][2] कालान्तर में इस जाति को लोध से लोधा कहा जाने लगा और इसकी पहचान एक मेहनती किसान के रूप में की जाने लगी। ब्रिटिशकालीन भारत में लोधा जाति को प्रमुख कृषक जाति माना गया है।[3] [4] ब्रिटिशकाल में लोधा जाति के लोग संयुक्त प्रान्तों से मध्य प्रान्तों की ओर फैल गये और वहां जाकर लोधा लोगों ने अपना नाम बदल कर लोधी कर लिया। [5] [6] वर्तमान में इस जाति को लोध, लोधा व लोधी तीनों नामों से जाना जाता है तथा इन्हें असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरयाना, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड व तेलंगाना आदि राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में शामिल किया गया है [7] जबकि पश्चिम बंगाल व उड़ीसा में ये अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखे गये हैं। [8] [9]

लोधा जाति की उत्पत्ती

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लोधा जाति की उत्पत्ती प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद के मण्डल 3, सुक्त 53 एवं मंत्र 23 में प्रयुक्त शब्द ‘लोधं’ से मानी जाति है। इस मंत्र में लोधं शब्द का प्रयोग एक कुशल योद्धा के गुणों को प्रदर्शित करने हेतु विशेषण के रूप में किया गया था। [10] कहा जाता है कि चन्द्रवंश व सूर्यवंश के संघर्ष के समय चंद्रवंशी महाराज बुध ने ऋषी मुनियों की सलाह से इसी मंत्र की मंत्रणानुसार लोध गुण युक्त वीरों की सैना तैयार कर युद्ध में विजय प्राप्त की थी। बाद में इस सैना के वीरों की पहचान लोध क्षत्रीय के रूप में की जाने लगी जो कालान्तर में लोधा क्षत्रीय कहलाये। [2] ब्रिटिश इतिहासकारों ने लोधा जाति की उत्तपत्ती के बारे में अलग-अलग विचार व्यक्त किये हैं। मैथ्यू एटमोर शैरिंग महोदय ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू ट्राईब्ज एण्ड कास्ट्स एज रिप्रजेन्टेड इन बनारस’ में लिखा है कि ‘‘लोध जाति के लोग मूलतः लोध नामक पेड़ की छाल को बेचा करते थे जो कि रंगाई व औषधी के रूप में काम आती थी इसीलिये ये लोग लोध कहलाये।’’ [3] जे.सी. नेसफील्ड महोदय ने अपनी पुस्तक ‘ब्रीफ व्यू ऑफ कास्ट सिस्टम’ में लिखा है कि ‘‘लोधा शब्द अंग्रेजी के Clod-Breaker शब्द से बना है। यहां Clod का अर्थ ‘लोड’ से और Breaker का अर्थ ‘हा’ से है इन्हें जोड़ कर लोधा (Lod+ha) शब्द बनता है।’’ [4] विलियम क्रुक महोदय ने अपनी पुस्तक ‘द ट्राईब्ज एण्ड कास्ट्स ऑफ नोर्थ वेस्टर्न एण्ड अवध’ में लिखा है कि ‘‘लोधा शब्द संस्कृत के लोधरा शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘एक पेड़ की छाल’ जो कि रंगाई के काम आती है चुंकि ये लोग प्रारम्भ में इस पेड़ की छाल को बेच कर जीवन यापन करते थे इसलिये ये लोधा कहलाये।’’ क्रुक का दूसरा मत था कि ‘‘लोधा शब्द संस्कृत के ‘लुब्धका’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘एक निर्भीक’ या ‘एक शिकारी’।’’ जैसा कि इनके लिये कहा जाता है।[11] आर.वी. रस्सेल महोदय ने अपनी पुस्तक ‘‘द ट्राईब्ज एण्ड कास्ट ऑफ द सेन्ट्रल प्रोविन्सेस ऑफ इण्डिया’’ में लिखा है कि ‘‘मध्यप्रान्तों में ये पंजाब के लुधियाना से आये थे इसीलिये इन्हें लोधी कहा जाने लगा। इनका स्थाई नाम लोधा है।’’ इसी पुस्तक में आगे लिखा है कि ‘‘ सागर जिले में कहा जाता है कि पहले लोधी की उत्पत्ती महादेव जी के द्वारा कुर्मी महिला के खेत में स्थित बजूके से उस खेत की सुरक्षा के लिये की गई थी।’’ [5] ई.ए. गैट महोदय ने सन् 1901 बंगाल की जनगणना रिपोर्ट में लिखा है कि ‘‘ इस जाति की उत्पत्ती के बारे में मिदनापुर में कहा जाता है कि इन्हें पाण्डवों ने शिकार के लिये चुना था जबकि मयूरभंज में ये राजा बली के वंशज कहे जाते हैं।[12]

लोधा जाति का इतिहास

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लोधा जाति का अस्तित्व पौराणिक काल से है। पुराणों में कई जातियों का उल्लेख है जिन्हें सोध, रोध, लोध, बोध कहा जाता था लोधा इन्हीं के वंशज हैं।[13] लोधा जाति क्षत्रीय वंश से है। स्मृतियों व अत्र संहिता से भी इस जाति की क्षत्रियत्वता सिद्ध होती है। [2] मुगलकाल में भी लोधा जाति का उल्लेख लोध राजपूत के रूप में मिलता है। मुगल बादशाह अकबर के समय आगरा, कोंण्डा व अहमदाबाद की शाही फौज में लोध राजपूत घुडसवार व सैनिक काफी संख्या में थे। [14]

उत्तर पश्चिमी प्रान्तों (वर्तमान उत्तरप्रदेश) में लोधा जाति

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ब्रिटिशकालीन पुस्तकों में उत्तर पश्चिमी प्रान्तों (वर्तमान उत्तरप्रदेश) में लोधा जाति को कृषक वर्ग में एक स्वतंत्र जाति माना है और प्रमुख कृषक जातियों में इसका उल्लेख किया है। लोधा जाति के बारे में लिखा गया है कि ये अच्छे फसल उगाने वाले, शांत व मेहनती हैं।[15] अवध क्षेत्र में ये अतिप्राचीन काल से रह रहे हैं। लगभग 9 सौ वर्ष हुए कांथ नामक लोधा ने कांथा नामक नगर बसाया था। जो कि उन्नाव जिले के पुरवा परगने में तहसील से 9 मील व सदर स्टेशन से 18 मील की दूरी पर है। लगभग एक हजार वर्ष हुए मांखी नामक लोधा ने मांखी नगर बसाया जो तहसील हसनगंज जिला उन्नाव में है। [16] सन् 1921 में हुई जनगणना के अनुसार संयुक्त प्रान्तों, ब्रिटिश टेरेटरी, अवध व आगरा डिवीजन में लोधा जाति की जनसंख्या 10,46,816 थी।[17] संयुक्त व उत्तर पश्चिमी प्रान्तों (वर्तमान उत्तरप्रदेश) के लगभग सभी जिलों में विशेषकर आगरा, एटा, इटावा, मैनपुरी, झांसी, ललितपुर, सारंगपुर, अलीगढ़, बुलन्दशहर, मेरठ, बदायूं, बिजनौर, बरेली, कानपुर, गोरखपुर, फरूखबाद व फतेहपुर आदि में लोधा जाति के लोग निवास करते थे और यहां ये सिर्फ मजदूर या कृषक ही नहीं है बल्कि भूस्वामी भी थे इसीलिये इन्हें यहां कई जगह ‘‘मुकादम’’ भी कहा जाता था।[18] [19] [20]

मध्य प्रान्तों (वर्तमान मध्यप्रदेश) में लोधा जाति

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संयुक्त प्रान्तों से लोधा जाति के लोग मध्य प्रान्तों (वर्तमान मध्यप्रदेश) की ओर तेजी से बढे़। ये लोग नर्बदा घाटी, बांणगंगा और छत्तीसगढ़ के खैराबाद तक फैल गये। सन् 1911 की जनगणना के समय यहां इनकी जनसंख्या लगभग 3 लाख थी। मध्यप्रान्तों के हौशंगाबाद, जबलपुर, सागर, नरसिंगपुर, भांदरा, मण्डला, छिंदवाडा, रायपुर, व दमोह आदि जिलों में लोधा अधिक संख्या में रहते थे। यहां ये अपने स्वयं की भूमि के मालिक बन गये थे और उच्च कृषक वर्ग की जातियों की तरह अपने को ‘‘ठाकुर’’ करने लगे थे। पन्ना के राजा ने इनमें से कुछ परिवारों को राजा व दीवान की उपाधियां भी प्रदान की थीं। नरसिंगपुर में इन्हें ‘‘पटेल’’ का दर्जा दिया गया था। इतिहासकारों के अनुसार जो लोग यहां पंजाब के लुधियाना से आये थे उन्हें लोधी कहा जाने लगा इनका स्थाई नाम लोधा है।[21] [5] [6]

राजपुताने (वर्तमान राजस्थान) में लोधा जाति

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राजपुताने (वर्तमान राजस्थान) में लोधा जाति प्रमुख कृषक जाति मानी जाती थी। ये लोग पूर्वी राजपुताना जिलों में अधिक भूमि पर खेती करते थे। धौलपुर में ये 45 गांवों के मालिक थे तथा 91 और गांवों की भूमि का उपयोग करते थे इस प्रकार ये सन् 1880 में 17 हजार एकड़ भूमि को जोतते थे।[22] सन् 1697 से पूर्व करौली राज्य के दक्षिण पश्चिम में स्थित उंटगिरी तहसील लोधा लोगों के कब्जे में थी। लोधों के बनवाये बंध व तालाब आज भी यहां मौजूद हैं। देवरावल की दक्षिणी सीमा पर लोद्र राजपुत रहते थे, उनकी राजधानी का नाम लुद्रवा था यह जैसलमेर से 10 मील दूर पश्चिम में है। [23] सन् 1901 की जनगणना में राजपुताना क्षेत्र में लोधा लोगों की जनसंख्या 44,943 बताई गई थी। राजपुताने के जयपुर, भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बूंदी, टोंक, झालावाड़, सिरोही, मेवाड़, मारवाड़, प्रतापगढ़, अलवर व शाहपुरा में लोधा अधिक संख्या में रहते थे।[24]

बंगाल व उडीसा में लोधा जाति

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लोध, लोधा व नोध जाति एन्गुल व उड़ीसा के सहायक राज्यों की आदिवासी जाति थी। कहा जाता है कि ये लोध सिंहभूम व मयूरभंज से आये थे और इनका सम्बन्ध मयूरभंज के नोध लोगों से है। जो कि यहां की प्राचीन जातियों में से एक है। मिदनापुर में सहर व साबर जनजाति को इसका पर्याय कहा जाता है। इनका पारम्परिक व्यवसाय जंगली उत्पादों लाख, कोकून, शहद आदि को इकट्ठा करना था। सहायक राज्यों में इन्हें लोधा खेडिया यहा जाता था।[12]

लोधा जाति की उपजातियां व गोत्र

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पथरिया, मथुरिया, संकला जरिया, करहर, बनयान, लाखिया, खारिया, खागी, पनिस, पुरबिया, कथारिया, माहोरिया, जैसवार, सिंगराउर, नरवरिया, अन्तरवेदी,[11] [20] महदेले, भदौरिया, जरिया, खाकरहा, जैसारी, ओनतो, बसयान, चांदपुरिया, दौदांसिया, गुडलेया, हरदिया, जांगरा, जंघेल, किरबनियां, लोहबंसी आदि हैं।[25] पंडित छोटेलाल महोदय ने अपनी पुस्तक ‘जाति अन्वेषण’ में लोधा जाति के 515 उपभेद होना बताया हैं।[2]

लोधा जाति की जनसंख्या

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सन् 1891 में की गई जनगणना के अनुसार भारत में लोधा जाति की कूल जनसंख्या 16,74,098 थी। जिसमें सर्वाधिक जनसंख्या उत्तर पश्चिमी प्रान्तों (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में 10,29,213, मध्यप्रान्तों (वर्तमान मध्यप्रदेश) में 2,87,241 तथा राजपुताने (वर्तमान राजस्थान) में 45,524 बताई गई है।[26] Ajay Kumar Lodha (talk) 07:36, 10 May 2021 (UTC)

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  16. ^ William Charles Benett, Oudh. Gazetteer of the Province of Oudh... Printed at the Oudh government press [etc.] p. 72-75,100,111,205,426.
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  18. ^ Atkinson, Edwin T. (Edwin Thomas). Statistical, descriptive and historical account of the North-western Provinces of India. Allahabad : Printed at the North-western Provinces' Government Press. p. 45,182.
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  21. ^ Sherring, M. A. Hindu Tribes And Castes Vol. 2. p. 102,103.
  22. ^ Sherring, M. A. Hindu Tribes And Castes Vol. 3. p. 55.
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