“विश्वशान्ति प्रचारक ” आचार्य श्री श्री स्वामी सम्पदानन्द गुरु महाराज जी ने वर्ष १९२३ में अपने ब्रह्मस्वरूप भगवानावतार गुरुदेव श्री श्री ठाकुर दयानंद देव जी से देवघर स्थित लीला मन्दिर आश्रम आकर दीक्षा ग्रहण करने के बाद कठोर तप साधना की इच्छा से त्रिकूट पर्वत के भीषण घनघोर जंगल में जहां हिंसक पशुओं बाघ, चीता, शियल, सांप, कालाबिच्छू इत्यादि का राज होता था, जब यहां दूर-दूर तक मनुष्य नजर नहीं आता था, उस समय इस पत्थर की प्राकृतिक गुफा में एकांत स्थान में आकर तपस्या साधना में बैठे, ओर त्रिकूट पर्वत पैर त्रिकुटांचल आश्रम की नीव दिनांक ०३ अक्टूबर सन १९२४ (कार्तिक दुर्गा पंचमी) के दिन रखी थी|  ब्रह्मस्वरूप भगवानावतार श्री श्री ठाकुर दयानंद देव जी का संछिप्त परिचय:- चतैन्य चरितामृत के अनुसार ऐसा प्रमाण मिलता है, कि श्री श्री गौरांग देव चैतन्य महाप्रभु जी ने अपनी माता जी को वचन दिया था कि “वे (गौरांग देव चैतन्य महाप्रभु ) दो बार पुनः अवतार लेंगे और उनकी अंतिम लीला और भी चमत्कारित होगी, जिसके द्वारा उनके-नाम का प्रचार हर ग्राम देश व महादेश में होगा “, और ऐसा हुआ भी, ऐसा हो भी रहा है | गौरांग देव श्री रामकृष्णदेव “परमहंसजी” के रूप इस धराधाम पर अवतीर्ण हुए और उनका दूसरा स्वरुप श्री श्री ठाकुर दयानन्द देव जी के रूप में इस पृथ्वी पर हुआ था |